#InConversation with Preeti Singh
By Sanjana Srinivasan | Oct 19 2023 · 6 mins
Self Portrait, 2021
Dog On Terrace, 2021
Growing Land 2, 2021
Growing Land 1, 2022
Where I Was Born, 2021
Stiching Path, 2022
Blue Bird With Yellow Flower, 2021
Ask a Flower How to Dry?, 2021
Preeti - I remember writing a poem, talking to the bird on my window, it goes like this:
कुछ देखा नहीं सा दिन,
कुछ घबराया, तड़पता सा दिन,
बीत गया
जी हलक तक आते आते अभी लौटा नहीं,
दिल कश्मकश को कुछ झेप गया
कोई आवारा सा पंछी
लौटा था आज मेरी दीवारों में
कसे अनमने झरोखे पर धुप सेंकते हुए
वह भी कुछ कहता रहा
सिलसिलेवार से, टटोलता रहा अपने पंख
और कभी मुझे देखता रहा
जैसे की कहता हो,
है हिम्मत?
उड़ने नहीं कहता, अरी, कम से कम
चलो तो सही,
आज तक ठोकर खा उठना भी नहीं सिख सकी?
चलो, अभी बहुत दूर है मंजिल
नहीं अगर चलने पर उम्मीद तो,
कम से कम अपने उठ खड़े होने की हिम्मत को तो सराहो
ये क्या जरुरी है की
तुम्हारे आंसुओं से कोई जन क्रांति आ जाये
ये क्या जरुरी है की
तुम्हे मेरी तरह निहारे कोई प्यार भरी निगाहों से
अरी, मैं तो हूँ, जो अपने नन्हे पंखों से तुम्हे आवाज़ देता है
चलो तो सही कदम भर,
मैं सिखा दूंगा तुम्हें उड़ना भी एक दिन !
It's this relationship I have with my surroundings, a feeling of deeply looking into each other's skin, to become a witness of the tiniest moment of care; to know that these traces that we create and in the process of inhabiting a space, erase, are part of our making, part of why we feel alive.
In so many of my writings, these domestic objects and the domestic experience itself is integral to my way of being, which is also historical yet very much part of our everyday existence. It makes its way into my work seamlessly.